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हस्तशिल्प

 


 



मध्यप्रदेश की भूमि, संस्कृति और कला गुणों से सराबोर है। यहाँ की राजसी परंपराओं ने लंबे समय तक कला, संगीत, साहित्य, वास्तुकला, दर्शन, चित्रों और ऐसे कई क्षेत्रों में उत्कर्ष किया है। शानदार मंदिर, भव्य महल, कालिदास, भर्तृहरी, बिहारी जैसे महान कवि, तानसेन, बैजू बावरा जैसी संगीत क्षेत्र की जानी-मानी हस्तियां, विक्रमादित्य, राजा भोज, रानी दुर्गावती और अहिल्या बाई जैसे राजनीतिज्ञ और ऐसे कई महानुभाव, मध्यप्रदेश का गौरव रहे हैं।


 


मध्यप्रदेश ने हमेशा अपनी समृद्ध विरासत को संजोह कर रखा है। संगीत और नृत्य की शास्त्रीय परंपरा, प्रथागत रूप से यहाँ मौजूद है। राज्य ने दुर्लभ कला के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान दिया है। नाटककार सत्यदेव दुबे और हबीब तनवीर, डागर, असगरी बाई, अमजद अली खाँ जैसे विलक्षण संगीत विशेषज्ञों से, इस राज्य की पहचान बनी है।


 


मध्यप्रदेश, देश में अपने मध्यवर्ती स्थान के साथ अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के लिए भी भारत के दिल के रूप में जाना जाता है। यहां के चप्पे-चप्पे में, संगीत की विभिन्न और समृद्ध परंपराओं को विकसित किया गया है। ग्वालियर को भारतीय संगीत के महत्वपूर्ण केन्द्रों में से एक माना जाता है।


 


मध्यप्रदेश तानसेन की संगीत भक्ति का स्थान है और 'ध्रुपद' का भी जन्म स्थान है। 'ख्याल' भी यही परिष्कृत हुआ। सबसे पुराना माधव संगीत स्कूल यहाँ स्थित है, जो सन 1918 में पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के मार्गदर्शन में शुरू हुआ था। रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कहानियों में लथपथ मालवा ने संगीत के चाहने वालों को सदा प्रेरित किया है। पंडित रविशंकर और उस्ताद अली अकबर खाँ उनके चेलों में शामिल हैं। मृदंगाचार्य नाना साहेब पानसे से लेकर डागर भाइयों जैसे कई महान संगीतकार इस भूमि से है। उस्ताद आमीर खाँ और कुमार गंधर्व भी इसी भूमि के सुपुत्र हैं। उस्ताद अलाउद्दीन खाँ ने भारतीय संगीत को जो भी दिया है, वह अपने आप में इतिहास है।


 


अन्य कलाओं की तरह चित्रकला भी मध्यप्रदेश के जीवन का एक हिस्सा रहा है। यहां ड्राइंग और पेंटिंग की एक पुरानी परंपरा है। डी. जे. जोशी, सैयद हैदर रजा, नारायण श्रीधर बेंद्रे, विष्णु भटनागर, मकबूल फिदा हुसैन, अमृत लाल वेगड और कल्याण प्रसाद शर्मा जैसे महान चित्रकार, मध्यप्रदेश की चित्रकला के कैनवास पर योगदान दे रहे हैं।


 


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